फिर वही शाम…
आज फिर वही शाम लौट आई है। भीतर कुछ टूटकर फैल गया है, जैसे किसी खाली कमरे में अचानक हवा की सरसराहट भर जाए और आपको याद दिला दे कि बहुत-सी चीज़ें हमने संभालकर नहीं रखीं, बस यूँ ही समय की धूल में खोने दीं। मैं कोशिश करता हूँ खुद को समझाने की कि सब ठीक है मैं संभल चुका हूँ, दिल की परतों पर जमा चोट अब उतनी नहीं चुभती पर सच्चाई ये है कि कुछ खालीपन कभी नहीं भरता। अजीब है ये एहसास जैसे किसी ने धीरे से मेरे भीतर से कुछ खींचकर अलग कर दिया हो, और मैं हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ लेना चाहता हूँ, पर वो हमेशा थोड़ा दूर, थोड़ा धुंधला, थोड़ा बेकाबू रहता है। कभी लगता है कि वो मेरा ही एक हिस्सा था, कोई एहसास, कोई रिश्ता, कोई पुरानी गर्माहट जो अब हवा में तैरकर मुझसे दूर जा रही है। और मैं बैठे-बैठे उसे वापस छू लेने की कोशिश करता हूँ, जैसे इंसान उन लम्हों को छूना चाहता है जो कभी उसके थे पर अब सिर्फ यादों की तरह फिसल जाते हैं। कभी-कभी लगता है कि इंसान खुद से ही बिछड़ जाता है। एक दिन सुबह उठता है और पाता है कि दिल का आधा हिस्सा कहीं और जा चुका है, कहीं बहुत दूर, ऐसी जगह जहाँ हाथ पहुँचते-पहुँचते थक जाते हैं। शायद हर किसी के भीतर ऐसी ही कोई चुप्पी रहती है, कोई अधूरापन, जो अचानक किसी पुराने दर्द की तरह उभर आता है और याद दिला जाता है कि इंसान कितना नाज़ुक है। मैं अक्सर सोचता हूँ क्यों कुछ चीज़ें हमारे भीतर इतनी गहरी जगह बना लेती हैं कि उनका जाना भी एक साया बनकर रह जाता है? क्यों हम उन भावनाओं को छोड़ नहीं पाते जिन्हें हमें बहुत पहले छोड़ देना चाहिए था? शायद इसलिए कि कुछ रिश्ते हमारे भीतर ही जन्म लेते हैं और हमारे भीतर ही मरते हैं। उनकी कब्रें कहीं बाहर नहीं होतीं, बस हमारे अंदर एक कोना होता है जिसे हम कभी पूरी तरह साफ नहीं कर पाते। आज भी भीतर एक खिंचाव है जैसे कोई अनकही बात, कोई अधूरी उपस्थिति, जिसे नाम देना मुश्किल है। कभी लगता है कि बस एक कदम और, एक पुकार और, एक कोशिश और शायद वो वापस लौट आए, शायद वो एहसास फिर से हमारे भीतर बसा हुआ मिल जाए।लेकिन सच यही है कि कुछ दूरियाँ किसी एक पल, किसी एक स्पर्श से कम नहीं होतीं। वे समय की तरह हैं एक बार निकल जाएं तो लौटते नहीं। जीवन चलता रहता है.....!!!!!
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