हारा आदमी

  कहीं एक अधूरा ख्वाब है। जो आँखों में किरकिरी बन चुभता रहता है। कितना भी रो लो बहता ही नहीं है। बेचैनी नहीं जाती।

ऐसा लगता है, ख्वाब टूटने के लिए ही देखे जाते हैं। मुकम्मल हो जायें तो तकदीर वरना उम्र भर की खलिश है। सीने में धड़कता दिल, धड़कना बंद कर दे तो सुकून हो जाये शायद। शायद किसी रोज ख्वाबों के मसान पर बैठे हम खुद को झोंक दे किसी वैराग्य की लपटों में, मुर्दा ख्वाबों के साथ जल जायें, अधूरे ख्वाब भी राख हो जायें।

मगर ऐसा नहीं होगा। दिल नहीं मानेगा, बगावत करेगा। टूटे ख्वाबों की किरचें समेटे नये ख्वाब देखेगा और नये ख्वाबों के पीछे जिंदगी कुछ और बरस चलती जायेगी, सिलसिला चलता जायेगा।

कहीं तो हजारों अधूरे ख्वाब हैं। जो देह पर खंरोचते रहते हैं। कितना भी मरहम लगाओ, जख्म भरता ही नहीं है... ये हारा हुआ आदमी मरता भी नहीं है। 💔

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