ज़िन्दगानी
म्र ना बड़ी अजीब चीज़ है ....खासकर ये 21 से 30 वाली ...साला हर मिनट में अलग रंग ले लेती है । ये ऐसा वक़्त हैजब जिम्मेदारियां , शौक और अस्तित्व में से किसी एक को चुनना पड़ता है और हम मिडल क्लास लोग आदर्श बननाही चुन पाते हैं या हमें चुनना ही पड़ता है हमारे लिए बाकी ऑप्शन जैसे एक शो पीस की तरह रखे होते हैं । जब पहलीदफा परिपक्वता की सीढ़ी पार कर 21 की उम्र पर पहला कदम रखते हैं तो चहक रहे होंते हैं ..हमारे पास इतने रिश्तेहोते हैं कि अंजुलि में नहीं समा पाते , आँचल छोटा पड़ता है ...लोग जुड़ते हैं और जुड़ते जाते हैं ...हम ये तय नहीं करतेकि हमें जरूरत है या नहीं हमें हर कोई अपना लगता है । लगता है दुनिया कितनी खूबसूरत है , बेवजह ही लोगडिप्रेसेड रहते हैं ..और उस वक़्त लगता भी यही है कि ये रिश्ते हमारी उम्र से ज्यादा चलेंगे ।पर फिर ना कमबख्त एकमोड़ आता है जैसे किसी लंबी सड़क को तय करते वक़्त ब्रेकर ....ये ब्रेकर सिर्फ ब्रेकर नहीं ब्रोकर भी होता है ....बहुतकुछ तोड़ देता है यार ....तब हमें महसूस होता है कि हर चीज़ वैसी थी ही नहीं जो हम देखते आए थे ..पीठ पीछे ख़ंजरघोपने वाली कहावतें पुरानी हो चुकी अब लोग ना सिर्फ सीने पर वार करते हैं बल्कि मुकर भी जाते हैं ... मुझे लगता हैमुकरना सबसे बड़ी त्राषदी है ...ये वो समझ सकता है जिसने झेला है ...खैर अब भी मुट्ठीभर रिश्ते बचे होते हैं....आखिर में छूट जाने के लिए ....वो लोग जो जान बन जाते हैं जिनके बगैर हमें लगता है हम जी ही नहीं सकते वोसबसे पहली सफ़ में खड़े होते हैं दूर जाने वालो में ....ज़िन्दगी की एक अच्छी और बुरी बात ये है कि ये आपके हर डरको खत्म कर देती है ...और हर हाल में.... आप जिस बात से जितना डरते हैं वो उतनी करीब आ खड़ी होती है .....मैंमानता हूँ ज़िंदगी के मुश्किल वक़्त ज़िन्दगी के अपने तरीक़े होते हैं शायद कांट छांट करने के जैसे पौधों से छाँटकरजर्जर , ज़र्द पत्तियां हटा दी जाती हैं ताकि वो समूचे पेड़ को ना सड़ा दें वैसा ही कुछ .....प्रकृति ने अपने फिल्टर अलगबनाएं है मनुष्य से भी बेहतर ....। आप जब 25 का पड़ाव पार करते हैं तो उन बाकी बचे मुट्ठीभर रिश्तो में से उंगली परगिनाने भर के नाम ही रह जाते हैं ....आप यकीन मानिए आप बेहद खुशनसीब है यदि 25 का पड़ाव पर करने के बादभी आपके सबसे करीबी रिश्ते आपकी दोनों हाथ की उंगलियों पर गिने जा सकते हैं अमूमन तो हाथ खाली ही मिलते हैं। 25 का पड़ाव अहम पड़ाव है जहां आप शिथिल हो जाते हैं भावनाओं में या ये कहें स्थिर हो जाते हैं ...आपकोयकीनन बेहद फर्क पड़ता है हर किसी के जाने का आप चाहे इसे कितना भी झुठलाएँ पर फर्क बस इतना आता है किअब आप और गिड़गिड़ाना नहीं चाहते ...किसीको चीखकर नहीं बताना चाहते कि आपको जरूरत है उनकी ....आप टूटरहें हैं ढह रहे हैं पर दूसरी ओर आप खुद को बचा रहे होते हैं ....इन झूठे रिश्तो से ...फरेब से या झूठी तसल्लियों से...आप पूरी तरह खाली हो चुके होते हैं .......एक दरगाह जितने शांत ...जहां आने जाने वालों का कितना भी तांता हो...आप स्वयं में लीन मुस्कुराकर देखते हैं हर बिलखते ,मुस्कुराते चेहरे को ....एक अन्तरिम मुस्कुराहट लपेट ....
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