"एक वक्त था”

 एक वक़्त था!

जब मेरी ख़्वाहिशों  की कतार बहुत लंबी थी!

जब मुझे तुम भी चाहिए थी और तुमसे जुड़े हर एक हक़ भी!

एक वक़्त था!

जब मैं हर रोज सपनों में जिया करता था!

जब मेरी हर सुबह तुमसे होती थी,

और शाम तुमपे ख़त्म!

एक वक़्त था,

मैं बदतमीज़ था काफी,

मुझे समझ नहीं थी हर उस चीज़ की जो मेरे पास थी!

तुम भी थे उसमें से एक!

तुम्हारा होना जैसे मेरे लिए एक आदत सी थी!

जैसे जीवन के लिए साँस,

गीत को आवाज़,

दिन को रात,

तुम कुछ ऐसे ही थे मेरे लिए!

सिर्फ मेरे

तुम्हें आने की इजाज़त तो थीमगर छोड़ जाने का मुझे हक़ नहीं!

एक वक़्त हुआ करता था!

जब मैं वक़्त को मात दिया करता था!

और फिर तुम चले गएऐसे ही अचानक एक रात!

बिना कोई वजह दिए!

लगा जैसे ज़िन्दगी ने जोर का झापड़ मारा हो मेरे गाल पे!

तुम्हारा जाना जितना मेरे दिल को दर्द देता था!

उससे कहीं ज्यादा मेरे अहम को!

मुझे लगा तुम आओगेमुझे छोड़ कर कहाँ ही जाओगे!?!

मगर फिर समझ आयाकोई था कहीं जो तुम्हे सँजो के रखने के क़ाबिल था!

जिसको तुम्हारे होने की अहमियत पता थी!

जिसके लिए तुम सुकून थेकोई आदत नहीं!

जिसके लिये तुम इश्क़ थेकोई बेफ़िज़ूल का जोश नहीं!

जिसको तुम्हारे होने की ख़ुशी का एहसास थातुम्हारे कभी  छोड़ के जाने का गुरूर नहीं!

और ऐसे एक दिन जब मुझे एहसास हुआ की मैंने क्या खोया है!

तुम किसी और के हो चुके थे!

हमेशा हमेशा के लिए!

ख़ैर अब शायद तुमको भी अपने फ़ैसले पर पछतावा हो रहा होगा…

तुम उसके हुए या नहीं ये अलग बात है शायद,

मगर यक़ीनन तुम कभी मेरे नहीं होंगे अब ये पता है मुझे!

तुम जो सिर्फ मेरे हुआ करते थे!

आज सबके होएक मुझे छोड़ के!

और मैं?! आज भी वैसा ही हूँबदतमीज़ बिखरा हुआ!

जिसको समेटने वाला कोई नहीं!

हाँ फर्क़ इतना है,

कि अब  तुमपे कोई हक़ है

 किसी से कोई उम्मीद.......

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