“वादें”
वादें ...
याद है ना…..
मैंने भी तुम्हारे सीने पर सर रख और हाथों में हाथ थाम खुले आसमानों के नीचे तुम्हारी खुली छत पर ना जाने कितने वादे किए थे तुमसे ...तुमने हर वादे के बदले हमेशा ही मुझे दिया था एक निश्चिंत मौन ...उस मौन का अर्थ आज तक समझ नहीं आया मुझे.... वादें.... खट्टे मीठे वादें .., हमेशा स्माइल करने का वादा,एक दूसरे से रूठकर कुछ ही मिनटों मान जाने का वादा , उम्रभर साथ रहने का वादा, शहर से दूर कहीं किसी कोने में अपना आशियाना बनाने का वादा ..खुद में डूबकर मुझे पा लेने का वादा ...शादी के बाद अपने घर से जल्दी लौटने का वादा ...हमेशा ही हाथ थामे रखने का वादा
..सीने से लगे रहने देने का वादा ...उफ्फ... कितना अजीब है ना बिना गारन्टी के ज़िन्दगी को किसी के पास गिरवी रख देना... और उस सख़्स का उसे खो देना । मैंने भी तो यही किया था ..गिरवी रखा था खुद को .....अपनी ख्वाहिशों को , ख्वाबों को ..सिर्फ और सिर्फ इन्हीं वादों के बदले
आज उन वादों का बोझ महसूस हो रहा है मुझे.. इनका वजन इतना है कि मैं इनके बोझ से दबा जा रहा हूँ । अब इन्हें उम्रभर ढोना है मुझे ....उम्रभर... अकेले ...। मुझे रह रहकर संभालना है इन्हें ...ये आये दिन भड़काते जो हैं मुझे तुम्हारे खिलाफ । ये अकसर ही सवाल दागते हैं मुझपर...ये सवाल करते हैं मुझसे की इनका हक़दार कौन है ...ये अक्सर मुझसे तुम्हारा पता पूछते हैं । ये मुझसे मांगते हैं सबूत तुम्हारे ज़िंदा होने का ...पूछते हैं सबब तुम्हारा बेवफा होने का । इनसे भी अब बर्दाश्त नहीं होती मेरी सिसकियां ये भी चीखने लगे हैं मेरे संग..., मेरी ही तरह ख्वाहिश करते हैं एक गुमनाम मौत की ।
मौत....मेरी मौत ...हाहाहाहा ...नहीं कायर नहीं हूं मैं ना मैने जीना छोड़ा है... बस लड़ना छोड़ दिया है ...खुद से ,हालात से और ....और तुमसे । तुम धुंधले पड़ने लगे हो मेरी याददाश्त में बेशक तुम कभी कोई रोशन सवेरा रहे हो मेरा पर ज़ेहन अब हमेशा झुठलाता रहा है तुमको .., ये वादें जो अब लावारिश हैं...इनका हक़दार अब मैं खुद हूँ..., वादों की एक उम्र होती है ...इनकी भी होगी ...ये भी कभी टूटेंगे मेरी तरह... दगाबाजी करेंगे तुम्हारी तरह ...।
इनका हक़दार अब सिर्फ मैं हूं । ये फिर उपजेंगे किन्हीं दो दिलों के दरमियां ........पर मुमकिन है इनमें अब वो ताक़त ना हो ....किसी को बचाये रखने की ...ज़िंदा रखने की ।
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