“An Open Letter For You”


आदमी या तो अमीर हो या फिर गरीब।  मिडिल क्लास आदमी सारी जिंदगी कन्फ्यूजन में जीता है। हम अपने छोटे से छोटे नुकसान को भी सीरियसली लेते हैं। तुम मेरी अब तक जी हुई जिंदगी का सबसे बड़ा नुकसान हो। नेचर से मैं अंडरस्टैंडिंग हूँ लेकिन मेरा इश्क़ अंडरस्टैंडिंग नहीं है। हद जिद्दी है। नुकसान बहुत बड़ा था सो हमसे सहा भी नहीं गया। लगता था जैसे जान निकल जाएगी। रह-रह के ऐसे दर्द उठता जैसे मेरे शरीर से मेरे आधे हिस्से को काट के अलग किया जा रहा है। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि तुम किसी और के साथ जा चुकी हो। तुम्हारे साथ मेरी जिंदगी एकदम स्क्रिप्टेड कहानी सी चल रही थी। मैंनें उन वक्तों में तुम्हारे बिना कुछ सोचा ही नहीं था। मेरा दिमाग काम करना बंद कर चुका था। एकदम शून्यता थी। समझ ही नहीं आता था अब कैसे होगा सब ? मैं क्या-क्या करूँगा अकेले ? 


मुझे पूरा भरोसा हो गया था तुमने मेरी जिंदगीरूपी क्रिकेट में एक छोर संभाल रखा है। तुम हो तो मुझ पर कोई दबाव नहीं है मैं खुल के जी सकता हूँ। इसी भरोसे ने मुझे थोड़ा लापरवाह बना दिया। थोड़ा नहीं शायद ज्यादा लापरवाह। जिसके चलते मैं किसी भी सिचुएशन में अपना 100 परसेंट नहीं दे पाया। चीजों को लास्ट मोमेंट तक टालना, कुछ पाने-बनने के सिर्फ कोरे सपने देखना और तुम्हारी बड़ी-बड़ी बातों पर आँख बंद करके विश्वास करना कि इन द एंड आल इज वेल ही होगा। जिंदगी एक फिल्म की कहानी की तरह अपनी कल्पनाओं में गढ़ ली थी कि चाहे जो भी हो कुछ भी करूं, मेहनत करूं न करूं, लक्ष्य बनाऊं न बनाऊं, टाईमपास करूं, चकल्लस में जियूं, आखिर में सब सही ही हो जाएगा।

मैं भी तुम्हारे साथ रहते रहते बिल्डर हो गया था। बस बिस्तर पे पसरे हुए हवाई महल बनाया करता था। मैं गैर-जिम्मेदार हो गया अपने कैरियर को लेके। जब तक तुम मेरी जिंदगी में रही मुझे सबकुछ आसान लगता था। किसी बात की कोई चिंता ही नहीं थी। तुम मुझपे मुझसे ज्यादा भरोसा दिखाती रही। तुम्हारे भरोसे मैं घोड़े बेच के सोता रहा। मैं सोके उठता तो था पर सोता ही रहता था। कोल्हू के बैल सी जिंदगी बस एक ही रस्ते घूम रही थी। तुमने मुझे जगाया ही नहीं कभी। एक सुबह उठा तो तुम नहीं थी। तुम जा चुकी थी। बिना बताये। न कोई बात न कोई झगड़ा। अरे, रात को जब सोया था तो सब ठीक था। अचानक से क्या हो गया ? बहुत तलाशा तुम्हें तुम नहीं मिली। कभी कभी अब जब चौक कर नींद से उठता हूं तो लगता है कि जैसे किसी ने एक झन्नाटेदार थप्पड़ मार के जगाया हो मुझे। जागता हूँ तो देखता हूँ कुछ नहीं है, वो घर जो हम दोनों ने बनवाया था, तुम्हारा कमरा, मेरे हवाई महल। जिंदगी क्रिकेट है अगर तो वो भी आउट हो सकता है जिसने एक छोर शुरू से संभाल रखा है। मुझे धीरे-धीरे सब समझ आ रहा था।

अब झल्ला उठता हूँ रह-रह के खुद पर। अब नींद नहीं आती है। जबर्दस्ती सोता हूँ। रोज आधी रात को उन्हीं सपनों को रिकॉल करने में लगा रहता हूँ। तुम मेरे ख्वाबों-खयालों में इस कदर हावी हो कि मैं अपने सपनों को फ़िल्टर नहीं कर पा रहा हूँ। लगता है जैसे तुम्हारे बिना मुझसे कुछ नहीं होगा।
मैं कहता था ना कि मेरा घर बहुत छोटा है तुम मेरे घर में नहीं रह पाओगी, सिर्फ एक कमरा मिलेगा। तुमने कहा, तो बड़ा घर बनवाएंगे न हम दोनों।
मैं तुम्हें गलत नहीं कहता। एक गलत कदम उठाने जा रहा था उसके लिये दिन-रात घुटता हूँ। याद आती है वो मेरी खुदगर्जी तो रो देता हूँ। जो मेरे हाथ पावं के चोट देख के रो देती थी, बुखार होने पे दिन भर में तीस  बार कॉल करती थी। तुम्हारा ये केयरिंग रूप देख के बहुत डरता था मैं। मैं तुमको बताता ही नहीं था चोट या बीमारी के बारे में। 
सोचो डिप्रेशन के उस दौर में अगर कहीं कोई गलत कदम उठा लेता तो आज ये कहानी तुम ना ही पढ़ पाती और न ही ये मैं लिख रहा होता
अभी साथ जिये कई लम्हों की बातें और बाकी हैं फुर्सत में उनका भी विश्लेषण किया जाएगा फिरहाल यही लेटर से काम चलाइए....

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