“मेरे राम का जन्मदिन”

#जन्मदिवस विशेष मेरे राम
आपके सामने आपके गुणों की प्रशंसा करना सूर्य के सामने प्रकाश दिखाने जैसा है,फिर भी जब से आपको जाना है मोहब्बत हो गयी है आपसे या यूं कहूँ की जिंदगी बन गए हो आप
पता है..जब आपको एकटक मेरी नजरे निहारती रहती है आपको तो लगता है कि बस अभी आप मुझे आके गले लगा लोगे ,जब भी आपको देखते हुए आपसे अपने दुख,सुख या कोई बताता हूँ तो अपने दिल को एक अलग सुकून मिलता है हाँ कभी कभी आँखों में आँसू भले आ जाते हैं पर ये आपसे मिलने की खुशी में गिर जाते हैं...
जिंदगी की इन तमाम ख्वाहिशों में एक भी है आपके गए उन अभी जगहों पर जाना है जहां आपने जीवन व्यतीत किया था माना ख़्वाब थोड़े मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं है पूरी उम्मीद है कि मेरे और ख्वाबों को आप पूरा करो या ना करो लेकिन इस ख्वाब को जरूर पूरा करेंगे...
जैसा कि हम सबको पता है कि आज रामनवमी है इस दिन त्रेतायुग में आर्यावर्त के महान सम्राट महाराज दशरथ जी के यहां जेष्ठ पुत्र के रूप में प्रभु श्री राम जी का जन्म हुआ था।
वैसे तो राम इस मृत्यु लोक में एक सामान्य मनुष्य की भांति जन्मे थे परंतु उन्होंने अपने कर्मों के द्वारा स्वयं को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के रूप में प्रतिष्ठित किया। उनका पृथ्वी लोक में आने का उद्देश्य समस्त मनुष्यों को इस बात का ज्ञान कराना था कि एक मनुष्य का जीवन किस प्रकार होना चाहिए समस्त विपत्तियों से घिरे होने के बावजूद भी हमारे अंदर कैसा धैर्य होना चाहिए जो हमारे जीवन में मर्यादा और संबंधों की पराकाष्ठा को बनाए रखें।
एक पुत्र के रूप में, एक पति के रूप में, एक राजा के रूप में और एक मनुष्य के रूप में मानव स्मृति में और अन्य कोई ऐसा उदाहरण दूर-दूर तक दिखाई नहीं पड़ता है जो राम के समकक्ष भी खड़ा हो सके। उनके द्वारा मानवमात्र को दी गई सीख आज भी उतनी ही चरितार्थ एवं तर्कसंगत है जितनी उस समय थी। राम हमें सिखाते हैं कि किस प्रकार संबंधों को निभाया जाता है चाहे वह एक सच्चे पुत्र के रूप में उनके द्वारा अपने पिता के वचन को रखने के लिए सहज ही 14 वर्ष वन में रहना स्वीकार कर लेना  ही क्यों ना हो इसके पीछे उनका उद्देश्य प्राणी मात्र को यह समझाना था कि लोग निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर किस प्रकार सोच सकते हैं और जीवन में माता-पिता का सम्मान रख सकते हैं। एक पति के रूप में उन्होंने सिर्फ सीता को ही अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया जबकि उस समय के समाज में किसी भी राजा के द्वारा एक से अधिक शादी करने की प्रथा बिल्कुल आम बात थी परंतु सीता के मन की उदासी को देखकर उन्होंने उनको वचन दिया कि उनके जीवन में सिर्फ एक ही सीता आई थी और एक ही सीता रहेगी। एक मित्र के रूप में वह हमें शिक्षा देते हैं कि मित्रता कैसे निभाई जाती है उन्होंने सुग्रीव से जब मित्रता की तो पहले वचन के रूप में बाली का वध करके सुग्रीव को राज दिलाया यही मित्रता का तर्कसंगत नियम है जो सच्चा मित्र होता है वह पहले स्वयं शुरुआत करता है दूसरी ओर जब विभीषण शरण में आए तो उन्होंने सहज ही उन्हें स्वीकार कर लिया। तीनों लोकों के स्वामी होने के बावजूद भी उनके जीवन में एक बार भी ऐसा नहीं दिखाई पड़ता है जब उनको अहंकार या घमंड ने स्पर्श तक किया हो जब वह सबरी से मिलते हैं तो माता कहकर उद्बोधन देते हैं और जूठे बेरों को सहज ही खा लेते हैं उनके मन में किसी भी व्यक्ति के प्रति हीन या घृणा की भावना नहीं है यह मानवता की अद्भुत मिसाल है। केवट के साथ उनका समय व निषादराज के साथ उनकी मित्रता वर्तमान मनुष्य को ऊंच-नीच से ऊपर उठकर गरीबी अमीरी की रेखा को पार करके मित्रता धर्म निभाने की एक अद्भुत शिक्षा देती है। शायद इसीलिए वह सभी मनुष्यों में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के रूप में विख्यात है।
राम का चरित्र वर्तमान मनुष्य को जीवन पथ पर शिक्षा देने के लिए आज भी उतना ही प्रासांगिक व सार्थक है। उनकी माता कैकई के द्वारा जब वनवास का निर्णय दिया गया तब उनके अनुज लक्ष्मण ने मां के लिए कई अपशब्दों का प्रयोग किया तब राम ने अपने अनुज को डांटते हुए कहा की ऐसी शिक्षा कौनसा धर्म देता है कि अपनी मां से गलत शब्दों में बात की जाए उन्होंने लक्ष्मण को समझाया कि उनके द्वारा किया गया कार्य कैसा भी हो पर हमारा कर्तव्य है कि हमारे मन उनके प्रति किंचित मात्र का द्वेष नहीं आना चाहिए। वर्तमान व्यक्तियों को शिक्षा देने के लिए, जीवन के पाठ पढ़ाने के लिए राम का चरित्र अति उत्तम है। एक शत्रु का भी सम्मान कैसे किया जाता है यह उन्होंने रावण के द्वारा युद्ध में हम सबको सिखाया हैं उनके द्वारा रावण को बार-बार संदेश भेजना कि उनकी पत्नी सीता को लौटा कर उनसे संधि कर ले अभी भी रावण को माफ कर दिया जाएगा जबकि रावण ने सीता को हरण करने जैसा जघन्य अपराध किया था फिर भी उनके मन में अपने शत्रु के प्रति द्वेष नहीं आया। राम को मर्यादा पुरुषोत्तम इसीलिए कहा जाता क्योंकि उन्होंने जीवन के किसी भी चरण में मर्यादा का हनन नहीं किया गया चाहे वह पिता की आज्ञा मानने की बात हो सीता का साथ निभाने की बात हो मित्रता करने की बात हो या फिर शत्रु के साथ व्यवहार करने की बात हो। मानव मात्र अगर रामनवमी के दिन राम के चरित्र का अत्यंत छोटा हिस्सा भी अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करेगा तो अवश्य ही वर्तमान समाज का परिदृश्य अलग नजर आएगा 
पुनः आपको जन्मदिवस की अनन्त ,अशेष,अपरमिरित, शुभकामनाएं मेरे सरकार
अपने से कभी दूर मत कीजिये ,चरणों मे कहीं छोटी सी जगह दे दीजियेगा मेरे राम

टिप्पणियाँ

  1. अति सुंदर 😍🤗 पूरा लेख पढ़ा हमने और सच कहें तो मन प्रफुल्लित हो गया । बहुत ही सुंदर एवं प्रसंसनीय लेख है।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ज़िन्दगानी

बीतें लम्हें

लौट आना