“जिंदगी का सफ़र"

दिल टूटना भी किसी बीमारी की तरह होता है,जो एक दम से एक दिन में ठीक नहीं होता, इसे ठीक होने में समय लगता है...1 साल 2 साल या पूरी जिंदगी ही
फिरहाल,हुआ यूं कि हम दोनों एक साथ उसके घर जा रहे थे यही कोई सितंबर अक्टूबर के समय था ट्रैन से उनके घर के पास वाले स्टेशन पर पहुँचे,उनके घर मैं पहली बार जा रहा था उनके पिता जी से भी मेरी कोई मुलाक़ात नही थी या यूं कहूँ उस समय तक उनके परिवार मे उनके भाई को छोड़कर किसी से कोई जान पहचान नहीं थी ,अंदर से डर लग रहा था मतलब फट के हाथ मे आ गई थी ऐसी वाली सिचुएशन थी लेकिन हम लोग स्टेशन से बाहर आके टैम्पू स्टैंड तक आये हम दोनों साथ मे पीछे की सीट पर बैठे,वो मुझे समझा रही थी ऐसा न करना ,वैसा ना करना उनके सामने हमेशा सीधे खड़े होकर रहना ,झुक कर ना चलना वगैरह वगैरह 
इन्हीं सब बातों में हम कब उनके गावँ पहुँच गए पता ही नहीं चला ,रास्ते भर हम दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़े रहे
उनके चौराहे पर टेम्पो रुकी उसने 20 रु निकाल के दिये और फिर हम घर की तरफ चल दिये...

“कहानी जारी रहेगी...

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