“तुम्हारी आँखें”

तुम्हारी आँखे....
याद है मुझे जब मैंने इन्हें पहले बार देखा था
शराब से भी ज्यादा नशीली थी..
जब पहली बार तुमसे अपने प्यार का इजहार किया था
लबों से पहले तुम्हारी आँखों ने ही हामी भरी थी
उस समय मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं था
याद भी नहीं तुमने जवाब क्या दिया था...

जब कभी हम आमने सामने होते तो हमारी बातें
आंखों ही आंखों में हो जाती ..
तुम कहते ना कि “यूँ मत देखो ना”
मैं पूछता क्यों
तो तुम कहते थे कि “कुछ कुछ होने लगता है”
खुद पर से काबू हटने लगता है

खैर..,
फिर वो मुझे आखिरी मुलाकात भी याद जाती है
जब मैं तुमको एकटक देखता रह रहा था
और तुमने मना कर दिया 
और फिर मैंने तुमसे पूछा था कि
कि अब क्या सच में हम जुदा हो गए हैं..??
क्या अब हमारे एहसास भी मर गए हैं
फिरहाल तो वो उत्तर नहीं लिख सकता है यहां पर
पर फिर भी
तुमने बिना कोई जवाब दिए,
बस आंखें फेर ली थी
“क्योंकि तुम्हारी आंखें तुम्हारे होठों से ज्यादा बातें करती हैं ना”
और बिन कहे बातें को पढ़ना इतने दिन में जान ही चुका था
क्योंकि तुम्हारी आंखें तुम्हारे होठों से ज्यादा बातें करती हैं ना
   - आदित्य श्रीवास्तव -


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