“रातों के अंधेरों में”

 यूँ ही कभी कभी कभी मैं अक्सर आधी रातों में जाग जाता हूँ । छत पर खड़े हो कर काले आसमां की ओर देख कर बिना कारण हंसता हूँ । ये हँसी न आसमां समझ पाता है, न मैं । बस ये हवाएं ही समझ पाती है मेरी हँसी के पीछे का दर्द क्योंकि उसने अपनी इश्क़ की खुशबू इसी हवा में कभी मिलाया था, मुझे अकेला छोड़कर  ..!!!

काश कि तुम मेरे पास होती...

आज न जाने ही क्यों ऐसा लगता है कि जिंदगी में दोबारा तुमको लाकर गलती कर दी क्या मैंने
मतलब जिसके बिना 2 दिन नहीं बीत रहे तो सोचो कल को कुछ ऐसा हो जाये जब एकदम से बातचीत होना हफ़्तों में या महीनों में होगा तब क्या होगा ,तुमको शायद उतनी दिक्कत न हो जितनी मुझे होगी क्योंकि मेरे पास मैं अकेला ही रहूंगा..
बीते दो दिनों में दिन में भी नहीं नींद आती और आज तो रात में भी नहीं आ रही है
पता नहीं ये जज्बात कैसे तुमसे बंध गए हैं जो जानते सब हैं लेकिन फिर भी पीछे नहीं हो पा रहे हैं,पता है कि अब हम कभी मिल न पायेंगे, न कभी एक हो पायेंगे,बस अब “ज़िन्दगी”
    तुम्हारे इंतज़ार में....
   Aditya Srivastava

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