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“Kuch Unkahi Baatein”

      कहते हैं ना कि “प्यार”अधूरा होता है लेकिन मुझे लगता है कि “अधूरा” ही प्यार होता है गर्मियों की छत में चांद की दूधिया रोशनी में हम दोनों ने साथ में एक दूसरे का हाथ अपने हाथों में लेकर कभी ये खुद से वादा किया था कि अगर हम दोनों एक ना हुए तो फिर जीना ही नहीं... उनके लिखे प्रेम पत्र आज भी इस बात की गवाही दे सकते हैं लेकिन फिर समय और हालात के आगे परिवार के खातिर खुद को समझाते हुए ये भी अक्स्पेट कर ही लिया कि नहीं माँ पापा की उम्मीदों का क्या होगा,वैसे भी वो अपने पापा से बहुत प्यार करती थी तो वो उन्हें इस तरह देख नहीं पायेगी ,कभी कभी कहती थी कि तुम जॉब पा जाओगे तो पापा भी मान जाएंगे लेकिन फिर भी........ वैसे...पापा के खातिर मुझसे भी लड़ जाया करती थी ,वैसे वो हैं भी खड़ूस लेकिन उसको मानना ही नहीं दोनों बाप बेटी कभी कभी एक जैसी ही लगती मतलब किसी की सुनना ही नहीं एकदम अलग ही लेवल छोटी छोटी बातों को लेके इतने आगे की सोचना... इतना अगर राजीव गांधी ने 1985 में सोचा होता और जनसंख्या नियंत्रण बिल ले आये होते तो आज भारत के हालात ऐसे ना होते.. कभी किसी का गलती से जनरल का जरनल हो जाये ...

“उनका जन्मदिन”

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जो इश्क़ अधूरा रह जाए तो खुद पे नाज़ करना, कहते हैं सच्ची मोहब्बत कभी मुकम्मल नहीं होती  यदि मैं अपने अधूरें अफसाने को सच्ची मोहब्बत का नाम दूं तो इसे मेरा दुस्साहस समझ कर माफ करना और यकीन मानों तुम्हें यदि मेरी बातें दुःख पहुंचाती हो तो बस यहीं दुआ करूंगा तुम मुझें भूल जाओं क्योंकि मैं तुम्हें कभी सपनें में भी दुःख तो क्या दुःख की परछाई भी नहीं पड़ने देना चाहता लेकिन साथ ये भी मानता हूं सच्चा इश्क कभी मुक्कमल नहीं होता और मुझें तुम क्यूं नहीं मिली शायद ईश्वर को मुझसें इर्ष्या हो गई थी मैनें उनकी जगह तुम्हें जो मेरे भगवान का दर्जा दे दिया था आमतौर पर लोग खुशी के पलों या दुःख के क्षणों में ईश्वर को याद करते हैं पर मुझें तुम्हारे अलावा किसी का ख्याल भी ना था हर क्षण , हर पल मैं तुम्हें ही याद करता था और खुश होनें तुम्हें याद कर रो लिया करता था और दुःखी होने पर तुम्हारे पास होने के एहसास को महसूस कर मुस्करा दिया करता था ईश्वर को शायद तुम्हारी बंदगी से ईष्या हो गई थी इसलिए उन्होंने हमारा प्यार मुक्ममल नहीं होने दिया परंतु  इश्क तभी पूरा होता हैं जबकि आशिक इश्क में फना ह...

“तुम्हारी आँखें”

तुम्हारी आँखे.... याद है मुझे जब मैंने इन्हें पहले बार देखा था शराब से भी ज्यादा नशीली थी.. जब पहली बार तुमसे अपने प्यार का इजहार किया था लबों से पहले तुम्हारी आँखों ने ही हामी भरी थी उस समय मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं था याद भी नहीं तुमने जवाब क्या दिया था... जब कभी हम आमने सामने होते तो हमारी बातें आंखों ही आंखों में हो जाती .. तुम कहते ना कि “यूँ मत देखो ना” मैं पूछता क्यों तो तुम कहते थे कि “ कुछ कुछ होने लगता है” खुद पर से काबू हटने लगता है खैर.., फिर वो मुझे आखिरी मुलाकात भी याद जाती है जब मैं तुमको एकटक देखता रह रहा था और तुमने मना कर दिया  और फिर मैंने तुमसे पूछा था कि कि अब क्या सच में हम जुदा हो गए हैं..?? क्या अब हमारे एहसास भी मर गए हैं फिरहाल तो वो उत्तर नहीं लिख सकता है यहां पर पर फिर भी तुमने बिना कोई जवाब दिए, बस आंखें फेर ली थी “क्योंकि तुम्हारी आंखें तुम्हारे होठों से ज्यादा बातें करती हैं ना” और बिन कहे बातें को पढ़ना इतने दिन में जान ही चुका था क्योंकि तुम्हारी आंखें तुम्हारे होठों से ज्यादा बातें करती हैं ना    - आदित्य श्रीवास्तव -

“रातों के अंधेरों में”

 यूँ ही कभी कभी कभी मैं अक्सर आधी रातों में जाग जाता हूँ । छत पर खड़े हो कर काले आसमां की ओर देख कर बिना कारण हंसता हूँ । ये हँसी न आसमां समझ पाता है, न मैं । बस ये हवाएं ही समझ पाती है मेरी हँसी के पीछे का दर्द क्योंकि उसने अपनी इश्क़ की खुशबू इसी हवा में कभी मिलाया था, मुझे अकेला छोड़कर  ..!!! काश कि तुम मेरे पास होती... आज न जाने ही क्यों ऐसा लगता है कि जिंदगी में दोबारा तुमको लाकर गलती कर दी क्या मैंने मतलब जिसके बिना 2 दिन नहीं बीत रहे तो सोचो कल को कुछ ऐसा हो जाये जब एकदम से बातचीत होना हफ़्तों में या महीनों में होगा तब क्या होगा ,तुमको शायद उतनी दिक्कत न हो जितनी मुझे होगी क्योंकि मेरे पास मैं अकेला ही रहूंगा.. बीते दो दिनों में दिन में भी नहीं नींद आती और आज तो रात में भी नहीं आ रही है पता नहीं ये जज्बात कैसे तुमसे बंध गए हैं जो जानते सब हैं लेकिन फिर भी पीछे नहीं हो पा रहे हैं,पता है कि अब हम कभी मिल न पायेंगे, न कभी एक हो पायेंगे,बस अब “ ज़िन्दगी”     तुम्हारे इंतज़ार में....    Aditya Srivastava

“जिंदगी का सफ़र"

दिल टूटना भी किसी बीमारी की तरह होता है,जो एक दम से एक दिन में ठीक नहीं होता, इसे ठीक होने में समय लगता है...1 साल 2 साल या पूरी जिंदगी ही फिरहाल,हुआ यूं कि हम दोनों एक साथ उसके घर जा रहे थे यही कोई सितंबर अक्टूबर के समय था ट्रैन से उनके घर के पास वाले स्टेशन पर पहुँचे,उनके घर मैं पहली बार जा रहा था उनके पिता जी से भी मेरी कोई मुलाक़ात नही थी या यूं कहूँ उस समय तक उनके परिवार मे उनके भाई को छोड़कर किसी से कोई जान पहचान नहीं थी ,अंदर से डर लग रहा था मतलब फट के हाथ मे आ गई थी ऐसी वाली सिचुएशन थी लेकिन हम लोग स्टेशन से बाहर आके टैम्पू स्टैंड तक आये हम दोनों साथ मे पीछे की सीट पर बैठे,वो मुझे समझा रही थी ऐसा न करना ,वैसा ना करना उनके सामने हमेशा सीधे खड़े होकर रहना ,झुक कर ना चलना वगैरह वगैरह  इन्हीं सब बातों में हम कब उनके गावँ पहुँच गए पता ही नहीं चला ,रास्ते भर हम दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़े रहे उनके चौराहे पर टेम्पो रुकी उसने 20 रु निकाल के दिये और फिर हम घर की तरफ चल दिये... “कहानी जारी रहेगी...

“हमारी कहानी”

मैं खुशकिस्मत था कि तुमसे प्रेम करने के लिए ईश्वर ने मुझे चुना लेकिन मैं ईश्वर का एहसान मंद भी होता अगर मुझसे प्रेम करने के लिए उसने तुम्हें चुना होता... खैर अब इन बातों से कुछ खास नही लेना देना मेरा लेकिन ना जाने हमेशा तुमसे बात करने को जी चाहता है, तुम्हारी फोटोज को बात करते समय कम से कम 20 से 30 बार देखता हूँ वो भी ज़ूम करके.. वो तुम्हारी आंखे उनमें एक अलग बी नशा है अभी भी जो सामने बैठकर देखते टाइम पता नही क्या हो जाता है कि फिर खुद के प्यार पर काबू करने मुश्किल लगने लग जाता है..।। ये माथे पर छोटी सी बिंदी ना दिल मे उतर जाती है और चेहरे की तुम्हारी हंसी पूछो ही ना तुम्हारा मुझे यूँ बात बात पर “हीरो” कहना एक अलग ही फीलिंग्स होती है और फिर तुम मेरी बात पर हूँ हूँ हूँ ,अच्छा अच्छा करना ये सब सुनके ना कभी कभी बहुत गुस्सा आती है खुदपर कि क्यों मेरे ही ज़िन्दगी में ऐसा करना था,मेरे साथ ही ऐसा ... To be Continued...