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"ज़िन्दगी की कहानी"

तुम्हारा यूँ मेरे साथ “ कनक भवन ” का परिक्रमा करना.. एक दूसरे का हाथ थाम कर जिंदगी जीना “ लाल साहब दरबार ” में यूं दोनों का सामने बैठकर एक दूसरे को देखना वो हनुमान गढ़ी के सीढ़ियों पर साथ साथ चढ़ना.. वो दोनों का साथ में मंदिरों में जाना.. अयोध्या की गलियों में जिंदगी के सबसे बेहतरीन लम्हें बिताना.. दुआओं में तुमको मांगना...  बजरंग बली से तुम्हारे लिए तुम्हारी खुशी चाहना... बाइक पर बैठकर यूँ मुझे कसकर पकड़ कर मेरे साथ स्टेशन से घर तक आना.. ऐसी तमाम यादों रोज रातों में आंखों के सामने ऐसी गुजरती है जैसे कि कल की बातें हो, नींद तुमको आ जाती होगी लेकिन मैं अब कभी कभी दवाओं का भी सहारा ले लेता हूँ... ऐसा नहीं है कि मैं डिप्रेशन या स्ट्रेस जैसे मामलों में पड़ चुका हूँ बस तुम्हारी आदत पड़ चुकी थी ना इसी लिया ऐसा होता होगा बाकी तुम्हे लगता है कि तुम्हारे लिए मेरी फीलिंग्स बदल गयी तो तुम्हारे और मुझमें फर्क ही क्या रह जायेगा...।। वो आखिरी मुलाकात की कुछ बातें अगर तुमको याद हो तो तब भी मेरी फीलिंग्स तुम्हारे साथ थी...हाँ मुझे लगता था कि ये सब गलत है लेकिन वो क्या है ना कि गलत सही ही देखा जाए तो फिर...

यूंही

मैं क्या था तुमसे मिलने के पहले एक सीधा साधा सा लड़का जिसे ना बोलने का ढंग , बिना अंडर शार्टिग के शर्ट पहनने वाला लड़का , किसी लड़की से बात करने से सौ दफा सोचने वाला लड़का और जिसे इश्क़ का "इ" भी नहीं पता वो लड़का ।। फिर एक दिन तुम्हे देखा ,वो शाम को मेरे सामने तुम्हारा यूँ मुझे मिल जाना ,तुम्हारे आने के बाद से जिंदगी को जिंदगी के आने का आभास हुआ और फिर तुमसे मिलने से पहले मुझे इश्क़ का कुछ खास मतलब मालूम नही था,, उसे मैं तुम्हारी आँखों से ही पहचान पाया था। वो जब गुलाब जल तुम अक्सर लगा लेती थी अपने सूट के साथ वो इश्क़ का अनुस्वार मालूम होता था मुझे।। मैं अपनी मुस्कान को अक्सर अपनी होंठो तले दबा लेता था वैसे ही जैसे वो हल्का सा काजल तुम्हारी कातिलाना नज़रों को नियंत्रित करता था।। तुम्हारी मुस्कुराहट मेरे दिल की धड़कन बढ़ा देती थी ।। वो बोलती आँखे,,शरारती आँखें होश उड़ाती आँखे,,झुकती आंखें  किसी महत्वपूर्ण शीर्षक पर ख़ामोश आंखें,, उन आँखों में देख कर ही तो  मैंने जीवन मे पहली बार महसूस किया था इश्क़ को,, और मान भी लिया था कि बस यही है इश्क़ ।। तुम्हारा मुझे बीच मे टोकते रहना , मुझे ब...