बेनाम रिश्ता
कब और कौन किसको कितना अच्छा लगने लगे इसका कोई निश्चित सिद्धांत नही कहा जा सकता, कभी किसी की बोली बाणी अच्छी लग जाती है, तो कभी किसी का व्यवहार, तो कभी किसी का रुप और किसी का गुण अच्छा लग जाता है, और इन्सान उससे प्यार करने लगता है। पर अक्सर कभी-कभी कोई ऐसा भी होता है , जब अकारण ही कोई अच्छा लगने लगता है ....जी चाहता है उससे बोला बतियाया जाये, अपना दुख दर्द कहा सुना जाये हंसा हंसाया जाये। भले ये जानते हुये कि इससे हंसना बोलना बतियाना समाज को अच्छा न लगेगा, और यह रिश्ता बहुत दूर तक नही जायेगा फिर भी मन उसी के आर्कषण में बंधा रहता है। और जितनी देर का भी संग साथ होता है इंसान उसे उस व्यक्ति के साथ भरपूर जी लेना चाहता है। ऐसा भी नही कि आप उससे मुहब्ब्त कर बैठे हों मगर ये भी है कि वो मुहब्बत से कम नही होती हां इस मुहब्बत में वासना नही होती कुछ पाने की अभिलाषा नही होती। इस रिश्ते को कोई नाम नही होता। अक्सर ये रिश्ता तो बस जंगल के फूल की तरह खिलता है महकता और मुरझा जाता है। जिसे न कोई खाद देता है न पानी देता है न सिंचाई करता हे न गुडाई करता है न जिसके खिलने पे जम...